हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सोमालीलैंड में हाल ही में इज़रायल की कथित मौजूदगी और उसे मान्यता दिए जाने की चर्चाओं के बाद जनता में भारी असंतोष देखा जा रहा है। इसी के विरोध में सोमालीलैंड के विभिन्न क्षेत्रों में इज़रायल विरोधी प्रदर्शन आयोजित किए गए, जिनमें बड़ी संख्या में आम नागरिकों ने भाग लिया। इन प्रदर्शनों के ज़रिए लोगों ने साफ़ संदेश दिया कि वे अपने क्षेत्र में इज़रायल के राजनीतिक और रणनीतिक हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करते।
अल जज़ीरा अरबी 21 के हवाले से बताया गया कि ये प्रदर्शन विशेष रूप से सोमालीलैंड के बोरोमा क्षेत्र में आयोजित किए गए। इनमें “समारोन” जनजाति के लोगों की सक्रिय भागीदारी रही।
प्रदर्शनकारियों ने फ़िलिस्तीन के झंडे लहराए और फ़िलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता व्यक्त की। उनका कहना था कि इज़रायल द्वारा अलगाववादी क्षेत्रों को मान्यता देना क्षेत्रीय स्थिरता के लिए ख़तरा है और यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि इज़रायल अफ्रीका और अरब क्षेत्रों में अपने राजनीतिक और सैन्य प्रभाव का विस्तार करने के लिए विभाजनकारी नीतियों को बढ़ावा दे रहा है। उनका मानना है कि सोमालीलैंड जैसे संवेदनशील और विवादित क्षेत्र में इज़रायल की मौजूदगी स्थानीय शांति, सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय संप्रभुता को नुकसान पहुंचा सकती है।
इज़रायल द्वारा सोमालीलैंड की स्वतंत्रता को मान्यता देने की किसी भी घोषणा का अरब और इस्लामी दुनिया में कड़ा विरोध हुआ है। तुर्की, मिस्र, इराक, जॉर्डन, फ़िलिस्तीन, सऊदी अरब, कुवैत, क़तर, यमन, जिबूती और सीरिया जैसे देशों ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों और संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ बताया है। इस्लामी सहयोग संगठन, खाड़ी सहयोग परिषद और अरब लीग ने भी सामूहिक रूप से इस फैसले को अस्वीकार किया है।
इन प्रदर्शनों और प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट होता है कि सोमालीलैंड में इज़रायल की मौजूदगी केवल एक कूटनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि जनता की भावनाओं और क्षेत्रीय न्याय से जुड़ा गंभीर सवाल बन चुकी है। स्थानीय लोग इसे बाहरी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं और इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने को अपना नैतिक और राजनीतिक कर्तव्य मानते हैं।
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